भारतीय ज्ञान परंपरा"और "राष्ट्रीय शिक्षा नीति,2020"( Bhartiy Gyan Parampra" Aur "Rashtriy Shiksha Niti 2020")


शिक्षा व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करती है ।उसे पूर्ण मानव बनती है इसे बनाने के लिए कुछ मूलभूत आवश्यकताएं हैं।जिन्हें नई शिक्षा नीति 2020 के परिचय में भी देख सकते हैं । जहां पूर्ण मानव की बात कही जा रही है।यह पूर्ण मानव क्या है?यह कैसे बनता है?इसकी आवश्यकता क्यों है?और यह हमारे भारतीय ज्ञान परंपरा का अंग और अनिवार्य तत्व के रूप में क्यों है ?हमारी शिक्षा नीति  शिक्षा को पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त करने एक न्याय संगत और न्याय पूर्ण समाज के विकास और राष्ट्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए मूलभूत आवश्यकता है।यह शिक्षा जो कि मानव की एक मूलभूत आवश्यकता को बताती है।यह भारतीय ज्ञान परंपरा में किस प्रकार विद्यमान है ,और किस प्रकार यह मानव  को आलोकित करती है।हमारी हमारी प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपराएं और हमारी संस्कृति संसार में मानवता को प्रोत्साहित करती आ रही हैं।समृद्ध करती चली आ रही है।इसी भारतीय संस्कृति को 'आर्ष' शब्द से भी पुकारते हैं ।'आर्ष' का आशय ऋषि मुनियों के द्वारा प्रतिपादित किया गया है । यह ऋषि -मुनि एक सामान्य मानव से सत गुणा गुणी और ज्ञान- विज्ञान से समृद्ध थे । तत्त्व की मीमांसा और तत्व के ज्ञाता यह ऋषि मुनि इस अतुलनीय भारतीय संस्कृति के समन्वय के लिए सराहनीय प्रयास भी किए हैं।इस भारत की एकता  अखंडता के लिए अपना सर्वस्व स्वाहा करने के लिए भी आतुर तत्पर रहते थे।

     ज्ञान की यह नूतन परंपरा का आरंभ आज भी नूतनता के साथ भारतीय ज्ञान की परंपरा को अक्षुण्ण बनता है।इसी से संबंधित पंडित मदन मोहन मालवीय जी के विचारों को भी जोड़ा जा सकता है।वह कहते हैं ,"भारतीय एकता अक्षुण्ण है।क्योंकि भारतीय संस्कृति की धारा निरंतर बहती रही है और बहती रहेगी।"इसी अनवरत यात्रा पर चलने वाला यात्री एक पूर्ण मानव के रूप में समाज में जाना जाता है । भारतीय संस्कृति भारतीय ज्ञान की परंपरा को लगातार अग्रसर करती आ रही है । तभी तो इकबाल भी कहते हैं ,"यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से ,कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी" यह संस्कृति ही है जिसका आधार लेकर ज्ञान की ज्योति प्रकाशित हो रही है।यह ज्ञान की परंपरा कोरी कल्पना नहीं है न हीं गल्प है।यह वैज्ञानिक और तार्किक भी है।ऋग्वेद में भी कहा गया है कि,साथ चलने,एक स्वर में बोलने और एक दूसरे के मन को जानने वाला समाज ही अपने युग को बेहतर बनाने की सामर्थ्य से युक्त हो सकता है।ऐसे युग में जीने वाले स्वयं के लिए बेहतर वर्तमान और आने वाले भविष्य के प्रति सचेत रहते हैं।भारतीय ज्ञान प्रणाली के स्वर्णिम इतिहास का अध्ययन करने पर हम यह जान पाते हैं कि,प्राचीन समय में इस परंपरा का अभीष्ट उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति के साथ ही साथ व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना भी था।स्वामी दयानंद सरस्वती भी शिक्षा को सर्वांगीण विकास करने वाली मानते हैं।

       भारतीय शिक्षा की यह प्राचीन प्रणाली जिसके अंतर्गत चारों वेद,वेदांग उपनिषद,पुराण ,आख्यान आदि प्राचीन काल में पढ़ाई जाने वाले दर्शनशास्त्र ,अर्थ शास्त्र ,शिक्षा शास्त्र ,धर्मशास्त्र,नाट्यशास्त्र ,प्रबंधन की नवीन प्रणाली तकनीकी ज्ञान विज्ञान की अकूत संपदा के रूप में हमारी भारतीय ज्ञान की परंपरा को विश्व में अतुलनीय बनाते हैं।इस स्वर्णिम परंपरा का उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति के साथ ही साथ व्यक्ति को समाज के लिए संस्कारवान भी बनाना होता था।जिसकी आवश्यकता को नवीन शिक्षा नीति भी मानती है।इसका व्यापक दृष्टिकोण और सूक्ष्म दृष्टि  दूरदर्शी परिणाम को अवलोकन  करने में समर्थ है।यह परंपरा जिसमें को लौकिक के साथ-साथ अलौकिक ,कर्म के साथ धर्म,भोग के साथ त्याग का अद्भुत संबंध  है । हमारे नैतिक ,भौतिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक मूल्यों पर विशेष जोर देने वाली यह शिक्षा प्रणाली जिसकी आज महती आवश्यकता है।इसमें व्यक्ति में अनुशासन ,विनम्रता ,सत्यता आत्मनिर्भरता ,नैतिकता और मानवता का विकास होता है । हमारी शिक्षा पद्धति जो हमारे भीतर मुक्ति का भाव उत्पन्न करती थी 'सा विद्या या विमुक्तये' विषयों विकारों से मुक्ति प्रदाता इसे आज हम इस संदर्भ में देखते हैं ,' सा विद्या या नियुक्तये'यह सिद्धांत वर्तमान में हावी है।व्यवसायिकता की होड़ ने शिक्षा के पट पर आवरण चढ़ा दिया है।वैदिक शिक्षा की उन्नत प्रणाली का स्मरण आवश्यक है । नालंदा ,तक्षशिला ,विक्रमशिला यह मात्र नाम नहीं हमारे गौरव में परंपरा के आधार स्तंभ है।जो अपने नाम से नहीं अपनी पद्धतियों,प्रणालियों और परंपराओं के कारण जग में विख्यात  हैं।हमारी परंपरा में संस्कारों का भी बहुत महत्व है।हमारे 16 संस्कार जन्म से लेकर मृत्यु तक विचारणीय है।इसे वैज्ञानिकता से जोड़कर देखें शरीर विज्ञान ,मन का विज्ञान इस लोक परलोक,आरंभ- अंत,जीवन की दिनचर्या ,त्योहार ,रस्मो - रिवाजों पर एक-एक बिंदु पर उन सभी पक्षों पर ध्यान देने पर ज्ञात होता है कि,हर एक कार्य के पीछे का कारण धर्म और विज्ञान से जुड़ा हुआ है।यहां तक कि हम वास्तु में भी इस विज्ञान का उपयोग करते हैं।विवाह संस्कार के समय हिंदू रीति- रिवाज,गीतों आदि में देखिए ..विवाह के 5 दिन पूर्व और विवाह के उपरांत भी चलने वाले रस्म- रिवाज क्या कहते हैं ? विचारणीय बिंदु स्पष्ट होने लगेंगे।       

Bhartiy Gyan Parampra" Aur "Rashtriy Shiksha Niti 2020"

     कुछ बातों की ओर हम ध्यान दे तो कई प्रश्न उभरेंगे जैसे- विवाह के समय मंडप तैयार करने के लिए किन-किन वस्तुओं की आवश्यकता होती है?विवाह के साक्षी कौन-कौन होते हैं?जैसे-जैसे हम आधुनिकता की चादर लपेटते जा रहे हैं ।,वैसे-वैसे संस्कारों को रिवाज को रस्मों को औपचारिक बनाते चले आ रहे हैं।योग आत्मा और परमात्मा से जोड़ने का उत्तम साधन भी है।हमारी परंपरा में वेद,उपनिषद ,पुराण पूर्ण मानव बनाने में ऐसे साधन के रूप में हमारे समक्ष हैं।जिसमें व्यक्ति अपनी पूर्णता को प्राप्त कर सकता है । यहां हम डॉ मुकेश जैन के शोध के कुछ अंश को प्रस्तुत कर सकते हैं ,"उपनिषद ज्ञान की अमूल्य निधि है।उपनिषदों में प्रतिपादित सृष्टि उत्पत्ति शास्त्र,तेतरी उपनिषद का पंचकोश सिद्धांत ,विभिन्न संवाद,आत्मा की जागृत सुसुप्ति स्वप्न व तुरीय अवस्थाएं ,यत पिंडे तत् ब्रम्हांडे का वैज्ञानिक सिद्धांत ,स्थूल -सूक्ष्म कारण शरीर ,कर्म सिद्धांत आदि पर जितना शोध किया जाए उतनी ही नवीन व वैज्ञानिक अवधारणाएं प्राप्त होती हैं । "(आई एस एस एन -2583-2948,भारतीय ज्ञान परंपरा व शोध ,अनुकर्ष, पीर रिव्यू त्रैमासिक पत्रिका)आगे हम इन्हीं के शब्दों में देख सकते हैं कि,"ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज बोधायन द्वारा करना,शून्य तथा दशमलव प्रणाली का जनक भारत को कहना,पिंगलाचारी के छंद नियमों का एक तरह से द्विआंकी (बाइनरी)गणित का कार्य करना,महर्षि भारद्वाज का विमान शास्त्र,वेदांग ज्योतिष में सूर्य चंद्रमा नक्षत्र सौरमंडल के ग्रह और ग्रहण के विषय में जानकारी,भास्कराचार्य द्वारा सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ में गुरुत्वाकर्षण का उल्लेख करना,शताब्दियों पूर्व नौवहन की कला का जन्म होना,भगवान राम द्वारा यात्रा पार करने के लिए नौका का प्रयोग करना,महर्षि कणाद द्वारा डाल्टन से पूर्व परमाणु वाद के सिद्धांत का प्रतिपादन ,वेदांत दर्शन में  पंचीकरण की प्रक्रिया तथा सृष्टि उत्पत्ति का वैज्ञानिक विवेचन,अगस्त्य संहिता में आश्चर्यजनक रूप से विद्युत उत्पादन संबंधी सूत्रों का मिलना तथा करोड़ो पांडुलिपियां आज भी शोध का इंतजार कर रहे हैं।ताकि भारतीय ज्ञान की विज्ञान की परंपरा को उसका यथोचित स्थान मिल सके।

     भारत की समृद्ध ज्ञान परंपरा को आत्मसात करने हेतु विदेशी विद्वानों का भारत आगमन यहां की शैली ,प्रणालियों पर सालों तक गहन अध्ययन,लेखन इस बात का प्रमाण है कि,हमारी समृद्ध परंपरा अद्वितीय है।

          इसी को आधार बनाकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में विद्यालय और विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों के बहुआयामी विकास के लिए उनके कौशल के विकास हेतु विशेष बल दिया गया है।इस नीति में 5+ 3 +3 + 4 का प्रारूप विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण नीति है।इस ओर सरकार की नीतियां भी इस ज्ञान की परंपरा को अग्रसर करने के लिए प्रतिबद्ध है।बजट में भी इसके लिए विशेष प्रयास किया गया है। डॉ देवीकी शिरोल ने अपने 'भारतीय ज्ञान परंपरा एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020' के लेख में कहते हैं ,"यह नीति भारत की समृद्ध विविधता संस्कृति एवं आवश्यकताओं पर विचार करते हुए भारत के युवाओं शिक्षक एवं वित्त शिक्षार्थियों को सामाजिक ,सांस्कृतिक,नैतिक व रचनात्मक अधिगम के साथ-साथ परस्पर सहयोग,एकता तथा भ्रातृत्व की भावना के विकास पर बल देती है।'निश्चय ही यह परंपरा और नीति पुनः भारत को विश्व पटल पर शीर्ष पर पहुंचाएगी। 

"Bhartiy Gyan Parampra" Aur "Rashtriy Shiksha Niti 2020"

   Dr. Sangita

    Lucknow

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