यही सच है (This is the Truth)
आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं वह बहुत ही गति से निकलता जा रहा है।हम सत्य से दूर होते जा रहे हैं। उस सत्य से जो हमारी आँखों के सामने रहता है फिर भी हम अनजाने बने रहते हैं। वह सच जो हमारे साथी की आँखों में, व्यवहार में दिखता है।फिर भी, हम उसे किसी अंधे की तरह देख नहीं पाते। या कहें कि देखना नहीं चाहते। यही दुख का सबसे बड़ा कारण है कि,उसे अपना इस कदर मान लेते हैं कि, उसपर किसी की नजर तक बर्दाश्त नहीं कर पाते और यही सोचते रहते हैं कि हमारा साथी भी हमारी तरह ही हमें चाहता होगा। यही हमारी सबसे बड़ी भूल होती है जिसे हम स्वीकार नहीं कर पाते और पीड़ा में डूबते जाते हैं। फिर स्थितियाँ बद से बदतर होनी शुरू हो जाती हैं।फिर,क्रोध और अपमान का सिलसिला शुरू हो जाता है और यह क्रोध जब आता है तब ही सच सामने आता है। छोड़ना तो हम जानते ही नहीं। हमने सीखा ही नहीं छोड़ना। हमने सीखा है कुछ भी हो पकड़ कर रखना। हम सच तो जान ही नहीं पाते समझ ही नहीं पाते।सच यही है।जो क्रोध में अपनी मर्यादा भूल जाए वह प्रेम नहीं कर सकता। जो प्रेम करता है वह हर स्थिति में, हर हाल में अपनी मर्यादा कभी नहीं भूलता। साथ कभी नहीं छोड़ता।वह जानता है जाने देना। यह जाने देना इतना आसान नहीं होता।वह ऐसा कुछ नहीं करता है, जो उसके संबंध को बिखरा करके रख दे।वह चाहे जितने भी गुस्से में रहे व्यक्ति उसे संभाल लेता है। ऐसा कुछ नहीं कहता है कि, फिर वह संभल ना सके। लेकिन जो वास्तव में प्रेम नहीं करता।वह समय आने पर आपसे बहुत प्रेम जताएगा,बहुत ज्यादा और जब उसके विपरीत आप होंगे, तब वह अपनी सारी मर्यादा लाँघ जाएगा।क्रोध में आपको वह सब कुछ कह देगा, आपके साथ वह सब कुछ इस तरीके से करेगा जैसा उसके दिमाग में चल रहा होता है। वह वही व्यवहार आपके साथ करेगा जो वास्तव में वह है। इसीलिए कहा गया है कि, यदि किसी का प्रेम जानना हो और अपना स्थान जानना हो तो व्यक्ति को गुस्सा दिलाओ, नाराज करो।गुस्से में व्यक्ति वही होता है जो वास्तव में वह है।भीतर से जो है,वह बाहर से वही नजर आता है। जब वह क्रोध में होता है। क्योंकि क्रोध विवेक को मार देता है।क्रोध में व्यक्ति संभल नहीं पता है। क्रोध में वाणी विचलित हो जाती है।क्रोध में व्यक्ति अपने आपे में नहीं रहता। होश खो बैठता है।क्रोध में भी यदि कोई खुद को नियंत्रित कर सकता है, तो वह भले ही अपने शब्दों को रोक ले। शब्दों पर नियंत्रण पा ले। भावनाओं पर नियंत्रण पा ले। लेकिन ऐसा कम ही होता है। व्यक्ति जब क्रोध में होता है, तब वह अगले के विषय में जो भी सोच रहा होता है,जो भी भावनायें उसकी बन रही होती है, जो भी विचार पल रहे होते हैं,नकारात्मक- सकारात्मक जो भी, वह खोल करके रख देता है। बाद में वह भले ही आपको मनाये, दुलराये, बहुत सम्मान दे। लेकिन वह वास्तविक नहीं होगा। कई बार ऐसा देखा जाता है कि, जो बहुत अधिक प्रेम करता है, वह नाराज भी अधिक होता है। गुस्सा भी अधिक करता है। झुंझलाता भी बहुत अधिक है। इरिटेट भी बहुत अधिक करता है।लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी वह अपनी मर्यादा नहीं भूलता है। जो वास्तव में आपकी केयर करेगा, आपकी परवाह करेगा,आपसे प्रेम करेगा,आपको खोने से डरेगा,वह व्यक्ति कभी भी ऐसा शब्द नहीं बोलेगा जो आपको आहत करें।जो आपके हृदय को छलनी करके रख दे। वह व्यक्ति हमेशा इस बात का ध्यान रखेगा कि, आपके शब्द उसे आहत न कर रहे हो।
This is the truth
जब भी हम किसी की आंखों में देखते हैं वह व्यक्ति इधर-उधर अपने आप को बचाने लगता है। कहीं ना कहीं वह संभलने लगता है, कि मेरी आंखों का सच सामने वाले को नजर न आ जाए।इसलिए वह जो है, आंख बचा करके इधर से उधर, उधर से उधर करने लगता है। आंखें भी बहुत कुछ कहती हैं। जब हम आंखों में आंखें डाल करके बात करते हैं तो, जो सच्चा व्यक्ति है,वह आंखों में आंखें डाल करके बात करेगा और कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं कि, चोरी भी करेंगे सीना जोरी भी करेंगे। गलत भी होंगे और गलत ठहराएंगे भी। तो ऐसे व्यक्ति जो होते हैं वह बहुत ही धूर्त होते हैं। उन व्यक्तियों से हमें बचकर रहना चाहिए। ये किसी भी मौके पर,किसी भी स्थान पर, किसी भी ऐसी बात पर जो उनके विपरीत हो, जो उनके विचार के विपरीत हो, जो उनकी मर्जी के विपरीत हो, उस समय वह व्यक्ति अपना सच सामने रख देता है। आप समझ सकते हैं। जो व्यक्ति एक बार ऐसी गलती करता है और ऐसा करता है कि उसके व्यवहार से आपको हर्ट हो,आहत हो, तो आप उसे एक मौका दीजिए।एक मौका देने पर वह व्यक्ति पुनः वही करता है। तो उसे एक मौका और दे सकते हैं, लेकिन यह मौका आखरी हो सकता है। क्योंकि जो व्यक्ति एक ही गलती बार-बार कर रहा है, वह उसकी गलती नहीं है।वह उसकी फितरत है।फितरत कभी बदलती नहीं है। जो एक बार अपनी गलती होने पर उसे सुधारता नहीं है, वह उसकी फितरत होती है और फितरत किसी भी कीमत पर नहीं बदलती है।वह चाहे आपके पास बहुत रुपए हो, सम्मान हो,सब कुछ हो लेकिन फितरत नहीं बदलती है। इसीलिए कहा जाता है कि शेर,शेर होता है लोमड़ी,लोमड़ी होती है।शेर और लोमड़ी में अंतर होता है। शेर ताकतवर होता है। लोमड़ी में ताकत नहीं होती लेकिन चालबाजियां,चालाकियां बहुत होती हैं।तो दोनों की फितरत अलग-अलग है। इसलिए कभी भी हो गलती करने वाले को परखना जरूरी है, कि वह एक बार,दो बार तीन बार, बार-बार अगर वही कर रहा है, तो संभलने की आवश्यकता आपको है। उसे नहीं। वह तो संभला हुआ है।वह तो अपना प्लान के हिसाब से काम कर रहा है और उसका मन सेट है।माइंड सेट करने की आवश्यकता अब आपको है,और छोड़ने की बारी अब आपकी है। कि,वह व्यक्ति आपके साथ बहुत दूर तक अब नहीं चल सकता। जितना चलना था, वह चल चुका। जितना आपका साथ देना था, वह दे चुका। चाहे जिस परिस्थिति में भी उसने आपका साथ दिया हो लेकिन पूरे मन से,पूरे दिल से वह चाहे जितना भी कहें यदि आप उसके सामने झुकते हैं और पुनः मौका देते हैं, तो यह आपके लिए घातक होगा। उसके लिए नहीं।यदि आप यह घात सहने के लिए तैयार हैं,तो आप उसके साथ रहिए।यदि नहीं तो उससे मन ही मन दूर हो जाइए। क्योंकि यह बहुत कष्टकारी होता है। इतना कष्टकारी होता है, कि आपके सोचने- समझने विचारने की क्षमता को मार देता है,और आप निष्क्रिय हो जाते हैं। उस स्थिति में आपके समक्ष केवल नकारात्मक चीजें घूमती हैं। केवल ऐसे विचार आते हैं,जो आपको खत्म कर देना चाहते हैं। आपको मार देना चाहते हैं और उनसे बचना बहुत मुश्किल होता है।उस स्थिति से यदि आप बाहर निकल गए हैं,तो वास्तव में आप बहुत वीर हैं। क्योंकि शारीरिक कष्ट, इसका निदान है। लेकिन मानसिक कष्ट के लिए कोई निदान नहीं है। उसका निदान स्वयं ही करना पड़ता है।मानसिक कष्ट मन से ही दूर हो सकता है।शारीरिक कष्ट के लिए दवा है। लेकिन मानसिक कष्ट के लिए मन का मीत ही जरूरी है। यह हमारी मजबूरी ही होती है, कि कोई इतना गहरे तक बैठ जाता है।कोई इतने गहरे उतर जाता है, कि उसे जीवन भर निकालने के लिए हम सोच भी नहीं सकते। हम उसे अपने आप से दूर कर दें।लेकिन यह दुनिया है। यहां रिप्लेस कर दिए जाते हैं लोग।आज आप, कल कोई और।जब व्यक्ति संसार से चला जाता है, कुछ ही दिन उसकी याद में लोग रोते हैं।तड़पते हैं।फिर उसे भूल जाते हैं।अपने काम में लग जाते हैं और फिर कभी भी याद ही नहीं रहता है कि, हां कोई व्यक्ति था,जो बहुत स्नेही था। बहुत प्रेमी था।वह भले ही समय-समय पर उन्हें याद करके रोते हो तड़पते हों,लेकिन यह दुनिया है। यह भूल जाती है। वह किसी को लेकर के बैठी नहीं रहती।आज आप हैं, कल कोई और है।
इस समय सबसे ज्यादा जरूरी है कि सत्य को जानना है। यह सत्य जो है, यह बहुत आवश्यक है कि, इसे आप समझें।इसे जानें।जो सत्य है, वह हमारी आंखों के सामने है। फिर भी,हम देखना नहीं चाहते हैं।हम मोह में पड़े रहते हैं और यह मोह हमें कहीं का नहीं छोड़ता है। यह मोह हमें तिल -तिल मारता है।यह मोह हममें उम्मीद जगाता है और यह मोह ही है जो इस दुनिया में बंद ही रखता है। इस दुनिया को छोड़ने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं करता है। इस दुनिया में सब कुछ वह जीना चाहता है।पाना चाहता है। हमेशा बांधकर रखना चाहता है।यह बंधन ही मुक्ति के मार्ग का बाधक है। हमें मुक्त होना है।मुक्त होना है इन उम्मीदों से,आकांक्षाओं से, मनोकामनाओं से, मुक्त होना है। जिस दिन हम समझ लिए कि, हम इसे दूर रह सकते हैं। जो है वह पर्याप्त है।जिस दिन हमने यह समझ लिया,उस दिन हमारी आधी समस्याएं हल हो जायेंगी।हमारे पास जो है, वह पर्याप्त है।और हम बहुत कुछ अचीव कर सकते हैं।बहुत कुछ उपलब्धि पा सकते हैं।लेकिन उसके लिए हमें इतना नहीं फाइट करना है,इतना नहीं लड़ना है, इतना नहीं पीछे पड़ जाना है कि, उसके लिए हम अपने सगे -संबंधियों को,अपने लोगों को छोड़ दें।हमारी सबसे बड़ी पूंजी है हमारे सत्कर्म।इस दुनिया में कुछ ऐसा करके जाना है कि, यह दुनिया हमें भूल न पाए और इस दुनिया के लोग जो है,हमें अपने पलक पाँवड़े बिछा करके स्वागत के लिए तैयार हो जाएँ।कुछ ऐसा करें।
कुछ ऐसा करने के लिए हमें समाज से जुड़ना होगा। स्वयं से बाहर होना होगा।व्यष्टि से समष्टि की ओर जाना होगा। जब हम समष्टि की ओर जाएंगे तो देखेंगे कि,हमारे दुख तो बहुत थोड़े से थे।राई मात्रा थे।वह राई भर के दुख हमें इतने पहाड़ से लगते थे कि, काटे नहीं कटते थे।जब हम समष्टि से जुड़ जाते हैं तो, यह सृष्टि, पूरी सृष्टि आपके साथ हो जाती है।उस समय आप अकेले नहीं रहते हैं। वह सुख चाहिए। वही सुख मंत्र,वही सुख और इस सुख के लिए हमें लग जाना है।पूरे मन से लग जाना है।
- डॉ. संगीता
This is the truth
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